सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर-
हरीश अरोरा तप्त है फिर से जवानी
(नेताजी सुभाष चन्द्र की जयंती पर)
तुमने पिरोये शिल्प की सारी कलाओं के सुमन
धन्य धन्य वीर सेनानी तुम्हें शत-शत नमन
एकता के सूत्र बांधे प्रीत के संबंध से
बो गए अंकुर विजय का रक्त के अनुबंध से
लिख गए तुम वक्ष पर 'विजयोत्सव' इतिहास के
वीर पुत्रों की धरा पर, जागरण के छंद से.
इस समर्पण पर्व पर झुकती धरा, झुकता गगन
धन्य धन्य वीर सेनानी तुम्हें शत-शत नमन.
क्रांति के जिस दीप को तुम दे गए अगणित शिखाएं-
आंधियों में भी अटल हैं, थम गयी पागल हवाएं.
फिर उठी है शंख लेकर, हिंद की आज़ाद सेना,
घोष से 'जयहिंद' के फिर गूंजती सारी दिशायें
पर्वतों को चीरकर फिर मस्त है पागल पवन
धन्य धन्य वीर सेनानी तुम्हें शत-शत नमन.
चीखती संताप वाणी, दहकता सरवर का पानी
गूंजती सन्देश बनकर, विश्व में तेरी कहानी
इन भुजाओं में अभी भी बह रही हैं लाल धारा,
धधकती मिट्टी धरा की, तप्त है फिर से जवानी.
रोकना मत, लक्ष्य को पाने चले उसके चरण,
धन्य धन्य वीर सेनानी तुम्हें शत-शत नमन.
राष्ट्र के इस यज्ञ में, जीवन समिध अपना किया
अपने पौरुष से सदा, माँ-भाल न झुकने दिया
चीरकर दुश्मन की छाती, कर गए हस्ताक्षर
मृत्यु के संघर्ष में, अमरत्व तुमने पा लिया
गा रही शौर्ये-कथा, हर एक सूर्य की किरण,
धन्य धन्य वीर सेनानी तुम्हें शत-शत नमन
सत्य का भीषण छलावा, छल रहा फिर से हमें
झूठ का फणधर विषैला, खल रहा फिर से हमें.
जानता हूँ मृत्यु को छलकर कहीं अदृश्य हो,
हर भुजा में आग बनकर, लौटना है फिर तुम्हें.
संकल्प रक्षाबन्ध के फिर चाहता है ये वतन,
धन्य धन्य वीर सेनानी तुम्हें शत-शत नमन।
(पोयट्स फेसबुक)
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