आभार सुश्री मंजु ऋषी का ,मेरे आमंत्रण स्वीकारे !
मन का मन से नमन
माफ़ी चाहती हूँ अपनी अनुपस्तिथि के लिए. कार्यालय में कार्य अधिक हो जाने की वजह से जुड नहीं पा रही थी. प्रशांत योगी जी ने लिखने के लिए फिर से प्रेरित कर दिया है. प्रशांत योगी जी के लेख बहुत अच्छे लगते हैं. मन करता है उन्हें उनके हर लेख पर बधाई दूं. श्री भगवन सिंह हंस जी का भरतचरित महाकाव्य भी बधाई का पात्र है. डा. नागेश पांडेय 'संजय' का गीत बहुत अच्छा लगा.
और डॉ नीलम जी का भी पुनः स्वागत , मेरे आमंत्रण का मान रखा !
श्री प्रशांत योगीजी की शिकायत जायज है। हम सभी एक लगाव महसूस करते हैं आपस में। और इसमें यदि कोई बहुत दिनों के लिए अनुपस्थित हो जाता है तो शिकवे-शिकायतें हो ही जाती हैं। मैं उनकी भावनाओं की कद्र करती हूं और कोशिश करूंगी कि अब नियमितता बनी रहे।
और आदरणीया डॉ मधु चतुर्वेदी जी का भी आभार /स्वागत !
प्रिय प्रशांत योगी जी,
आज कई दिन बाद ब्लॉग देखा| ब्लॉग पर पर मेरी अनुपस्थिति के अन्य अनेक कारण हैं| नीरव जी की अनुपस्थिति तो कदापि नहीं- और भी गम हैं ज़माने में लोक मंगल के सिवा| आपकी यह टिप्पणी अत्यंत आपत्तिजनक है – “कलम नीरव है तेरी पल रहे कोई और हैं| आपका साक्षात्कार मेरी कलम से हो चुका है फिर भी इस टिप्पणी में मेरा नाम जोड़ा इसका मुझे अत्यंत खेद है| माना कि नीरव जी कलम के धनी हैं, पर मैं उधार की जिंदगी नहीं जीती| मेरी लेखनी देने में समर्थ है – उसे किसी से लेने की, चाहें वह शब्द धन कुबेर हैं कोई आवश्यकता नहीं है| जिसके पैर गंतव्य की दूरिया नापने की आवश्यकता रखते हैं उसे बैसाखियों की जरुरत नहीं होती| खिन्न मन के साथ ...
पहली दोनों प्रतिक्रियाओं से कितनी भिन्न है तीसरी प्रतिक्रिया ! सन्दर्भ एक ही है !
ऐसा क्यों होता है ?.....................................प्रशांत योगी
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