

आद्यात्म की सुगंध से महकता आपका आलेख पढ़ा। जिसने बड़ा आनंद दिया। संगीत सुख नहीं आनंद में होना सिखाता है। संगीत के सात सुर सात समुद्र पार भी अपने अर्थ नहीं खोते हैं। इसलिए इन्हें धर्म और क्षेत्रीयता से बड़ा माना गया है। आपने ठीक कहा है-
वायु प्राण है ,क्यों कि सांसों की सरगम में भी वायु ही है !अगर वायु नहीं तो प्राण कहाँ ?सांसों का रेचक - कुम्भक ही संगीत-मय प्राण के आरोह और अवरोह हें ! प्रकृति का सबसे अनूठा वरदान है संगीत ! गहरे अर्थों में संगीत ही प्रकृति है जो मनुष्य की कृत्रिम धारणायों और अव-धारणायों की जंजीरें तोड़ता है !प्रकृति के संगीत में गहरे उतरे तो ध्यान अवश्य घटेगा !आत्मा का योग परमात्मा से होगा !धर्म, जाति ,वर्ग और सम्प्रदायों की दीवारें गिरेंगी ,प्रेम का उद-भव होगा !प्रेम के संगीत में डूबे तो मनुष्य में केवल मनुष्य को देख पायोगे !वेद की ऋचाएं में मोहम्मद और कुरान की आयतों में बुद्ध के दर्शन कर पायोगे !आत्मा के संगीत का अनुसरण किया तो खोखली परम्परायों की बेड़िया टूटेंगी !
डॉक्टर प्रेमलता नीलम
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