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Monday, January 24, 2011

ब्रह्मांड भी एक लय में ही गति कर रहा है


 सुरेश नीरव-
 जीवन में संगीत है या संगीत में जीवन है। शायद दोनों ही एक दूसरे के अन्योन्याश्रित है। क्योंकि जिस प्रकृति के अंतर्गत जीवन है वह प्रकृति भी लयबद्ध है। और ब्रह्मांड भी एक लय में ही गति कर रहा है। कॉस्मास संगीत पृथ्वी को भी नचा रहा है-झुमा रहा है।एक अदृश्य लय है जो हमारी धमनियों-शिराओं में बजती रहती है। एक थिरक है हम सभी के भीतर। जिसमें प्राण है वह प्राणी है। हर प्राणी की एक विशिष्ट लय है। संगीत से साक्षात्कार अपनी आत्मा से बतियाना है।
 कैसा इत्तफाक है कि भीमसैन जोशी के देहांत पर आपने संगीत पर अपना आलेख डाला है। ये उन्हें एक सच्ची श्रद्दांजलि है।
"गीत से सराबोर व्यक्ति आत्मनुशाषित होता है !आत्मा के जागरण का विषय है संगीत !एक ऐसी विधा है संगीत जो मनुष्य को मनुष्यता के नज़दीक लाती  है !संगीत जीवन में प्राक्रतिक सहजता लाकर  कृत्रिम आवरण उतार देता है !एक विद्वान् संगीतज्ञ ने संगीत के सात स्वरों को स्रष्टि का आधार मानते हुए कुछ ऐसे आख्यायित किया है --"सा" से साकार ब्रह्म ,"रे" से ऋषी-मुनि ,"ग" से गन्धर्व ,"म" से महीपाल इंद्र ,"प"से प्रजा ,"ध" से धर्म और "नी"से निराकार ब्रह्म !"
सुरेश नीरव

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