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Sunday, January 30, 2011

ताज़ा तरीन ग़ज़ल


कल ही भोपाल से वापसी हुई २५ जनवरी सायं ‘अभिनव कला परिषद, भोपाल’ द्वारा ‘अभिनव शब्द शिल्पी’ सम्मान प्राप्त किया साथ में अन्य जिन साहित्यकारों को ये सम्मान प्रदान किया गया उनमें श्री सोम ठाकुर का नाम उल्लेखनीय है अगले दिन (२६ जनवरी) को कला निकेतन संस्था द्वारा एक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें मेरी अध्यक्षता में श्री सोम ठाकुर, श्री अनुराग जी व जगदीश श्रीवास्तव सहित अन्य अनेक प्रतिठिष्ट रचनाकारों ने रचना पाठ किया

आज ४-५ दिन के बाद ब्लॉग देखा पप्पा परमार के सुदर्शन एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व को समेटे उनका छाया चित्र मन को भा गया, उन्हें आत्मिक सत्कार के साथ बधाई मानव जी, सदैव की भांति अपने चुटीले व्यंग के साथ उपस्थित हैं ‘कबीर’ पात्र के द्वारा आज की सामाजिक विकृतियों को दर्शाने का प्रयास अच्छा है हंस जी के भाव एवं भाषा दिन-व-दिन श्रेष्ठ से श्रेष्ठकर होते जा रहें हैं- बधाई नीरव जी को पल-पल प्राप्त हो रहें सम्मानों हेतु बधाई प्रिय मंजू श्री कविता अत्यंत मासूम और अल्हड भावों को उकेरते हुए बालपन कराती हैं सधन्यवाद अपनी ताज़ातरीन ग़ज़ल प्रस्तुत कर रही हूँ

नाशाद, ए अवाम, ज़रा आंख तो उठा!
बदलेगा ये निज़ाम, ज़रा आंख तो उठा!!

कीमत तेरी निगाह खुद की आंक ले अगर,
पूरा मिलेगा दाम, ज़रा आंख तो उठा!!

तू अज़मातों पे एतवार करके देख,
बिगड़े बनेंगे काम, ज़रा आंख तो उठा!!

रात काली दिन अगर धुंधला गया तो क्या,
होगी सुहानी शाम, ज़रा आंख तो उठा!!

उनका जो हक़ में खेमे गाड़ रहें हैं,
बिखेरेगा ताम-झाम, ज़रा आंख तो उठा!!

जो तू बुलन्द हौसले के साथ हो खड़ा,
हैं साथ तेरे राम, ज़रा आंख तो उठा!!

है खासियत तेरी यही, तू जान ले ‘मधू’,
तू आदमी है आम, ज़रा आंख तो उठा!!

डॉ मधु चतुर्वेदी

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