भगवान सिंह हंस प्रणीत महाकाव्य भरत चरित्र
में
रस निरूपण
(पी एच डी-हिंदी उपाधि हेतु)
शोध-प्रबंध
कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय
कुरुक्षेत्र
निर्देशक -
डा० राजेन्द्र सिंह वरिष्ठ प्रवक्ता
शोधार्थी-दीप्ति
प्राक्कथन
स्नातकोत्तर कक्षा के दौरान मैं सोचती थी कि यदि जीवन में मुझे कभी शोध का अवसर मिला तो मैं ऐसे रचनाकार पर अपना शोधकार्य करूंगी कि जिसका रचना संसार संख्या में बेशक कम हो लेकिन साहित्य में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने में सक्षम हो। जब मेरे शोध प्रबंध के विषय की चयन प्रक्रिया आरम्भ हुई तो मैंने विभाग के निर्देशक डा० वेदव्रत शर्मा व वरिष्ठ हिंदी प्राध्यापक बाबू राज जी से अपनी रूचि के बारे में बताया। डा० वेदव्रत शर्माजी ने मेरी सहायता में रूचि व लग्न को देख भगवान सिंह हंस द्वारा रचित भरत चरित्र महाकाव्य के ऊपर शोध करने का परामर्श दिया। इसके उपरान्त मैंने अपने निर्देशक डा० राजेन्द्र सिंह से विषय के बारे में चर्चा की। उन्होंन भी भरत चरित्र में ही शोधकार्य करने का उत्साह वर्धन किया। तत्पश्चात मैंने भरत चरित्र में रस निरूपण विषय को अपने प्रबंध के लिए चुना।
प्रस्तुत शोध प्रबंध कार्य छः अध्यायों में विभाजित किया गया है।
पहले अध्याय में श्री भगवान सिंह हंस के जीवन व्रत, परिवार, शिक्षा, व्यवसाय और उनका साहित्यिक परिचय बताते हुए उनके व्यक्तित्व निर्धारण का प्रयास किया गया है।
दूसरे अध्याय में रस का अर्थ, परिभाषा, रस निष्पति, रस के स्वरूप और रस निष्पति के अवयव आदि का वर्णन विद्वानों के द्वारा दी गयी परिभाषाओं के आधार पर किया है।
तृतीय अध्याय में भगवान सिंह हंस द्वारा प्रणीत महाकाव्य भरत चरित्र में निरूपित श्रंगार, करूणा, शांत, और हास्य का वर्णन किया गया है।
चतुर्थ अध्याय में भगवान सिंह हंस द्वारा रचित महाकाव्य भरत चरित्र में चित्रित वीर, रौद्र, वीभत्स, भयानक और अद्भुत रस का वर्णन किया गया है।
पंचम अध्याय में भगवान सिंह हंस द्वारा रचित महाकाव्य भरत चरित्र में निरूपित वात्सल्य एवं भक्ति रस का वर्णन किया गया है।
छठा अध्याय उपसंहार है। इसके अंतर्गत भगवान सिंह हंस के महाकाव्य भरत चरित्र में निरूपित रसों का मूल्यांकन किया गया है।
-दीप्ति
प्रस्तुतकर्ता=योगेश विकास
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