Search This Blog

Tuesday, February 1, 2011

मजेदार सामग्री

सुश्री मंजु ऋषि
आपकी रचना पढ़ी। रूप के तिलिस्म को तोड़कर चेतना को यथार्थ की तचती धूप में खड़ा करने का हुनर लिए रचना सपनों के यूटोपिया से निजात दिलाती है। और अखबारों के सच से भी रू-ब-रू कराती है। अखबारों के सिलसिले में और आज के हालात पर एक शेर आपके लिए-
चीखें दबी हुई हैं सवालात मत करो
मुझसे मेरे वतन की कोई बात मत करो
बच्चे हो हंसने की अदा भूल जाओगे
अखबार देखने की शुरूआत मत करो
इसी गुमान में
एक हल्की सी मुस्कराहट खेल जाती थी मेरे चेहरे पर
जो कभी लाज की लाली मुझमें भर देती थी
तो कभी मेरी आँखों में चमक

मैं खोई रही हसीन विचारों में
और पढ़ने लगी अखबारों में
इन खबरों को:-

“ मंत्रियो के घोटालों की
कश्मीर के उग्रवादियों की
पाकिस्तान और चीन की चालो की
बढती महंगाई और घटते स्तर की
बसों की टक्कर और दुर्घटनाओं की
चोरी, डकैती, मारामारी की
बलात्कारों और दहेज के कारण जलाई जाने वाली
बहुओं की बढती संख्या की
फैशन शो में बढ़ती अशलीलता की “
इन खबरों को पढ़ कर
उतरने लगा मेरे सौंदर्य का नशा !

दुःख हुआ मुझे
अपने मृगनायेनो पर
कुसुम कपोलों पर
कमल की अधखुली पंखुरी जैसे होंठो पर
गोरे रंग और कलाईयो की सुंदरता पर।
श्री अरविंद पथिकजी
आपके खंड काव्य पर कुछ कहना हिमालय को आइसक्रीम दिखाना है। मेरी कोटि-कोटि शुभकामनाएं. और असंख्य बधाइयां..इन पंक्तियों को साधुवाद--

वह वीर प्रसविनी धरती है,कण कण मे शौर्य समाया है
चंबल के खडे उठानों ने , वीरों को सदा लुभाया है
विद्रोह वहां के कण कण मे , अन्याय नही वे सहते हैं
लडते हैं अत्याचारो से , खुद को वे बागी कहते हैं
ग्वालियर राज्य की वह धरती अन्याय नही सह पाती है
अपने बीहडों- कछारों मे, बेटों को सहज छिपाती है
है इसी भूमि पर तंवरघार, जो बिस्मिल की है,पित्रभूमि
मिट्टी का कण कण पावन है,ये दिव्य भूमि ये पुण्यभूमि
इसके निवासियों के किस्से अलबेले हैं ,मस्ताने हैं
द्रढनिश्चय के ,निश्छल मन के , जग मे मशहुर फसानें हैं।
है सत्ता की परवाह नही, शासन का रौब न सहते हैं
ये हैं मनमौजी लोग सदा , अपनी ही रौ मे बहते है।
श्री अमित हंसजी 
आपका मुक्तक बहुत बढ़िया है। आप कृपया नियमित लिखते रहें।


कभी घट मलिन, कभी मत मलिन,

कभी मैं मलिन, कभी तू भी मलिन,

ऊसर में इक आस, भीतर! कोई पास,

ना वो तेरा मलिन, न वो मेरा मलिन॥

No comments: