विशिष्ट व्यक्तित्व-
जनाब रिंद सागरी
जनाब रिंद सागरी उर्दू अदब के एक वो फ़नकार है जो न केवल हिंदुस्तान बल्कि पाकिस्तान,दुबई,मस्कट और जहां-जहां उर्दू जाननेवाले लोग हैं वहां इनके नाम को बड़े एतराम के साथ लिया जाता है। रेग़ज़ार,रागेसंग,गुलरंग,सहर-ए-अहसास,शजर-शजर छांव,आसमान के बगैर,धूप का मुसाफिर,जागती तन्हाइयां,आवारा लम्हें,इमसाल,तिनका-तिनता फिक्र और ज़र्ब-ए-अना आपके प्रमुख काव्य संग्रह हैं। आपको इम्त्याज़े मीर,देहली उर्दू अकादमी के अवार्ड के अलावा अभी हाल में उत्तरप्रदेश सरकार के अमीर खुसरो अवार्ड से नवाजा गया है। जयलोकमंगल की ओर से उन्हें दिली मुबारकबाद..
.पेश है उनकी एक बेहतरीन ग़ज़ल...
रिंद साग़री की ग़ज़ल-
पूछते हो मुझसे क्या,कैसा सफ़र मैंने किया
जिंदगीभर दर्द का तन्हा सफ़र मैंने किया
हर तरफ खामोश तूफां थे गुबारे दस्त के
और उनके दरम्यां तन्हा सफ़र मैंने किया
कुहर में लिपटी हुई सोचों का दामन थामकर
रातभर जख्मी परिंदों का सफ़र मैंने किया
मुज़्तरिब गुमनाम-सी हमदर्दियों की भीड़ में
रात बंजारों का सफ़र मैंने किया
रास्ते में हर तरफ थी अजनबी ताज़ा घुटन
कैसी मजबूरी थी जो गूंगा सफर मैंने किया
एक जुगनू भी नहीं था रोशनी का जिक्र क्या
जब भटकती वहशतों का सफ़र मैंने किया
उम्रभर दीमकजदा बैसाखियां लेकर चला
कर सकेगा कौन अब जैसा सफ़र मैंने किया
कुछ मसाइल घर के थे ऐ रिंद जिनके साथ-साथ
पा बिरहना धूप में जलता सफ़र मैंने किया।
...(आवारा लम्हें,24 फरवरी,2007)
No comments:
Post a Comment