पांडेयजी आपका गीत बहुत मार्मिक है।
एक बार फिर छला भँवर ने,
एक बार फिर छला भँवर ने,
इन पंक्तियों ने तो जैसे दिल को ही छू लिय़ा।
डूब गई मदमाती नैया।
डूब गई मदमाती नैया।
एक बार फिर बाज समय का
लील गया है नेह चिरैया।
मन को समझाना ही होगा,
लेकिन क्या यह भी सोचा है -
प्रणय-कथा अब कौन कहेगा ?
मेरी बधाई।
ईशु
मेरी बधाई।
ईशु
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