

हे मेरे गुमशुदा पिताजी...
मुझे गोद लेने के बाद आप किस बिल में बिला गए कुछ पता ही नहीं चल रहा है। मैं आपको जगह-जगह सूंघ-सूंघकर ढूंढ़ कर थक गया हूं। अगर किसी रूपसी के काले जादू में गिरफ्तार होकर आप किसी गली में हनीमून मना रहे हों तो उसे तुरंत केंसिल करके घर वापस आ जाओ आपसे कोई कुछ नहीं कहेगा। मैं हूं न... आपके चले जाने से मुझे अब ब्लॉग पर ज्यादा लिखना पड़ रहा है। डरता हूं कि कहीं लोग मुझे इंटलैक्चुअल न समझ बैठें। मैं जन्म से ही काफी इज्जतदार प्राणी हूं। ये अपमान कहां बर्दाश्त कर पाऊंगा। और बुद्धजीवी बनकर कौन-सी मुझे किसी सरकारी दुकान की

आपका कटखना सपूत
इशु
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