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Monday, February 21, 2011

मन का मन से नमन
बहुत दिनों की व्यस्तता के बाद आज ब्लॉग देखने का अवसर मिला
हर बार की तरह इस बार भी बहुत कुछ और सब अच्छा-अच्छा पढ़ने को मिला
सतीश सिंह जी की "सात प्रेम कविताएँ" बहुत अच्छी लगीं
चला आता है
प्रेमहमारे
जीवन मेंअनजाने
हीचुपके से
रिश्तों के बारे में भी खूब कहा आपने -

बदल गये
रिश्‍तेपहलेमैं मछली
थाऔर तुम नदीपर अब हमनदी के दो किनारे
हैंएक-दूसरे सेजुड़े हुए
भीऔरएक-दूसरे सेअलग भी

अनामिका घटक जी की कविता भी मन को बहुत भायी, खास तौर पर ये पंक्तियाँ -
धरती से अम्बर
तकनि:शब्द संगीत
हैमौसम की शोखियाँ भी
आज चुप-चुप सी हैं

किश्तों में मरते हुए तुषार जी की गज़ल ने मन मोह लिया

कॉलिज- कॉलिज जाकर के झूटा राग सुनाया है
तुक्कड़ को कुछ भुक्कड़ ने
ग्रेट स्टार बताया है
इसकी कविता मारी है ,
उसका शे`र उड़ाया है
तब जाकर के लोगों को
इतना मूर्ख बनाया है -
नित्यानंद `तुषार` जी क्या खूब लिखा है आपने आपको बधाई

बहुत दिनों के बाद प्रशांत योगी जी को ब्लॉग पर देखा, उनका लेख पढ़ा। हर बार की तरह सम्पूर्ण आनंद आया आप खूब लिखते हैं
नीरव जी की रचनाओं के बारे में टिपण्णी करना सूर्य को दीपक दिखाने के समान है
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मंजु ऋषि (मन)

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