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Tuesday, February 1, 2011

लोकतंत्र में राम

श्री  अभिषेक मानव का व्यंग्य लोकतंत्र में राम पढ़ा। मिथकीय चरित्रों को लेकर समकालीन परिस्थितियों पर व्यंग्य करना एक गहरा और गंभीर काम है। आज की राजनीति को बेनकाब करता उनका व्यंग्य सोचने को मजबूर करता है कि राजनीति आज किस तरह चरित्रहीन हुई है। जातिवाद के जहर ने उसे किस तरह अपंग बना दिया है । आज की राजनीति का मूल ध्येय मेरे एक शेर में शायद सिमट गया है-
हर मुकम्मिल आदमी को अब हराया जाएगा
और जो आधे-अधूरे सब यहां चल जाएंगे..
पंडित सुरेश नीरव

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