Search This Blog

Tuesday, February 1, 2011

वह सूर्य भला कैसा जिसमे अग्नि का ही संसार नहीं,

गीत-
वह सूर्य भला कैसा जिसमे अग्नि का ही संसार नहीं,
वह गीत भला कैसा जिसके शब्दों में राष्ट्र का प्यार नहीं.

जो नहीं सत्य का पथ देती वह धारा नहीं है हिंद देश
है भरा स्नेह माधुरी जहाँ वह मरा नहीं है हिंद देश.
वह जीवित है अब भी यौवन की आंखों में जाकर देखो
फिर कैंसी शक्ति कैसा बल जो झुका सके यह हिंदी देश.
हम हिमशिखरों से ऊँचे हैं, किन्तु अभिमान न छू पाया
हम सागर कि भांति जीते, पर नफरत की जलधार नहीं.

यह हिंद देश है जहाँ पूज्य हैं, नर ओ” पशु सामान सदा,
यह हिंद देश है जिसे भू पर गूंजे गौरव-गान सदा.
यह हिंद देश है जहाँ तिमिर भी झुकता रवि के चरणों में
यह हिन्द देश है जहाँ सत्य का होता है सम्मान सदा.
है जब तक भरा अँधेरे का सागर मनुष्य की आंखों में,
तब तक ही सम्पूर्ण धारा पर प्रेम-भरा सत्कार नहीं.

यह गीता ज्ञान की भूमि है, यह कर्म-पंथ भारत माता
यह दिव्य लोक आदर्श धारा, पुण्य, पुनीत भारत माता
यह पराधीन जन का सपना, यह नारी का शक्ति संबल
यह विश्व-चेतना की अग्नि, यह ज्योति-किरण भारत माता.
यह अनुरागी, यह भावमयी, यह विश्व-तीर्थ मंगलकारी
यह आदर्शों की भूमि है खंडित जिसके संस्कार नहीं.

किंतु जब अपने हाथों में जीवन उल्लास नहीं होगा
और ज्ञान कर्म की भूमि पर, सत्य-विश्वास नहीं होगा
तब श्रमजीवी की श्रम बूंदे इतिहास नया लिख डालेंगी
और वीरों की इस भूमि पर कायर-इतिहास नहीं होगा
उठो, चीरकर हृदय उठा लो शंख क्रांति का हाथों में
यदि मातृ चरण में शीश चदें तो कोई भी उपकार नहीं.

जब शब्द करें विद्रोह, अधर अंगार उगलते जायेंगे
जब चीर दिशाओँ का सीना तूफान मचलते जायेंगे
जब मृत्यु सदा झुक जाती है, सम्मुख भारत के वीरों के
फिर जयचंदों के चरण भारती पर कैंसे रह पाएंगे
है वीर वही जिसके भुजदंडों में बारूद भरा है,
जो आग नहीं बन सकते उनको यौवन का अधिकार नहीं.
जो नहीं सत्य का पथ देती वह धारा नहीं है हिंद देश
है भरा स्नेह माधुरी जहाँ वह मरा नहीं है हिंद देश.
वह जीवित है अब भी यौवन की आंखों में जाकर देखो
फिर कैंसी शक्ति कैसा बल जो झुका सके यह हिंदी देश.
हम हिमशिखरों से ऊँचे हैं, किन्तु अभिमान न छू पाया
हम सागर कि भांति जीते, पर नफरत की जलधार नहीं.

यह हिंद देश है जहाँ पूज्य हैं, नर ओ” पशु सामान सदा,
यह हिंद देश है जिसे भू पर गूंजे गौरव-गान सदा.
यह हिंद देश है जहाँ तिमिर भी झुकता रवि के चरणों में
यह हिन्द देश है जहाँ सत्य का होता है सम्मान सदा.
है जब तक भरा अँधेरे का सागर मनुष्य की आंखों में,
तब तक ही सम्पूर्ण धारा पर प्रेम-भरा सत्कार नहीं.

यह गीता ज्ञान की भूमि है, यह कर्म-पंथ भारत माता
यह दिव्य लोक आदर्श धारा, पुण्य, पुनीत भारत माता
यह पराधीन जन का सपना, यह नारी का शक्ति संबल
यह विश्व-चेतना की अग्नि, यह ज्योति-किरण भारत माता.
यह अनुरागी, यह भावमयी, यह विश्व-तीर्थ मंगलकारी
यह आदर्शों की भूमि है खंडित जिसके संस्कार नहीं.

किंतु जब अपने हाथों में जीवन उल्लास नहीं होगा
और ज्ञान कर्म की भूमि पर, सत्य-विश्वास नहीं होगा
तब श्रमजीवी की श्रम बूंदे इतिहास नया लिख डालेंगी
और वीरों की इस भूमि पर कायर-इतिहास नहीं होगा
उठो, चीरकर हृदय उठा लो शंख क्रांति का हाथों में
यदि मातृ चरण में शीश चदें तो कोई भी उपकार नहीं.

जब शब्द करें विद्रोह, अधर अंगार उगलते जायेंगे
जब चीर दिशाओँ का सीना तूफान मचलते जायेंगे
जब मृत्यु सदा झुक जाती है, सम्मुख भारत के वीरों के
फिर जयचंदों के चरण भारती पर कैंसे रह पाएंगे
है वीर वही जिसके भुजदंडों में बारूद भरा है,
जो आग नहीं बन सकते उनको यौवन का अधिकार नहीं.
. डॉ हरीश अरोड़ा

No comments: