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Monday, February 7, 2011

पंडित सुरेश नीव की दो ग़ज़लें



पंडित सुरेश नीरव
मध्यप्रदेश ग्वालियर में जन्मे बहुमुखी रचनाकार पंडित सुरेश नीरव की गीत-गजल,हास्य-व्यंग्य और मुक्त छंद विभिन्न विधाओं में सोलह पुस्तकें प्रकाशित हैं। अंग्रेजी,फ्रेंच,उर्दू में अनूदित कवि ने छब्बीस से अधिक देशों में हिंदी कविता का प्रतिनिधित्व किया है। हिंदुस्तान टाइम्स प्रकाशन समूह की मासिक पत्रिका कादम्बिनी के संपादन मंडल से तीस वर्षों तक संबद्ध और सात टीवी सीरियल लिखनेवाले सृजनकार को भारत के दो राष्ट्रपतियों और नेपाल की धर्म संसद के अलावा इजिप्त दूतावास में सम्मानित किया जा चुका है।  
प्रस्तुत है उनकी दो ग़ज़लें-
 ख़ुशबुओं की तरह
खिलते फूलों में ख़ुद को छिपाते रहे
ख़ुशबुओं की तरह आते-जाते रहे
लाख चेहरे पे चेहरे लगाए मगर
आईने में नज़र दाग आते रहे
यूं तो रिमझिम हवा को भिगोती रही
क्यूं बदन धूप के फिर भी प्यासे रहे
उम्रभर की ख़ुशी सौंप दी थी जिन्हें
रंजिशें प्यार में वो बढ़ाते रहे
गुम अंधेरे में सारा ज़माना हुआ
हम तेरी रोशनी में नहाते रहे
फ़ूल ज़ख्मों के थे दर्द के बाग में
अश्क का उनको पानी पिलाते रहे।
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दर्द ढल रहे होंगे
धूप में परिंदों के पंख जल रहे होंगे
आंसुओं की सूरत में दर्द ढल रहे होंगे
तन्हा-तन्हा बस्ती में फ़ूल से ख़यालों के
नर्म-नर्म आहट पर पांव चल रहे होंगे
गर्म-गर्म सांसों के रेशमी अलावों में
मोम के बदन तप कर आज गल रहे होंगे
चांद-जैसी लड़की के शर्बती से नयनों में
ख्वाब कितने तारों के रात पल रहे होंगे
जुगनुओं की बस्ती में भोर ले के निकले हो
सबकी आंखों में नीरव आप खल रहे होंगे।
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