योगीजी
आपका राबिया का प्रसंग बहुत अच्छा लगा।
एक शाम राबिया बाइबल पड़ती हुई कुछ वाक्यों को रेखांकित कर रही थी !पादरी पहले तो एक सूफी संत के हाथ में बाइबल देखकर खुश हुए फिर शंकित शब्दों में पूछा "राबिया तुम किन शब्दों को रेखांकित कर रही हो ?मैं रेखांकित नहीं बल्कि कुछ कथ्यों का पुनरावलेखन रही हूँ ! थोड़ा संशोधन कर रही हूँ ! कुछ धारणाओं और अवधारणाओं का अभ्युथान कर रही हूँ ! इसमें लिखा है पाप से घ्रणा करो ,पापी से नहीं ! मै कहती हूँ घ्रणा हो ही क्यों ?
अपने जीवन को मेरे प्रेम कहें !
पंडित सुरेश नीरवजी,
आपकी हास्य गजल और बात उल्लू ने कही रचना लाजवाब है। खासकर ये टुकड़ा मुझे बहुत दिलचस्प लगा है-
गुस्ल करवाने को कांधे पर लिए जाते हैं लोग
ऐसे बूढ़े शेख को भी पांचवी शादी का योग
जाते-जाते एक अंधा मौलवी बतला गया
बात उल्लू ने कही गुस्सा गधे को आ गया
जय हो उस गधे की जिसे उल्लू की बात पर गुस्सा आ गया
डॉक्टर मधु चतुर्वेदी
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