रिश्वत के जुर्म में जो बर्खास्त हो गया
रिश्वत खिला के हो गया फिर से बहाल है।
हासिल फ़तह मक़बूल इन्हें हो या फिर उन्हें
मुर्ग़े को हर इक हाल में होना हलाल है।
मृगेन्द्र मक़बूल
प्रस्तुतकर्ता Maqbool
बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है उस्ताद..मज़ा आ गया। कभी-कभी हमारी ग़ज़ल पर भी नजरे सानी हो जाया करे तो हर्ज़ नहीं है। आप तो ब्लॉग पर चुपके से वारदात करके फरार हो जाते है। क्या फरारी कार खरीद ली है।
पंडित सुरेश नीरव
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