आज ब्लॉग देखा – कुछ नया नहीं था| मेरी ग़ज़ल जो ब्लॉग पर पोस्ट हुई है, उसमें कुछ मुद्रण-त्रुटियाँ हैं| कृपया उन्हें यूँ सुधार कर पढ़ें| मतले के बाद दूसरे शेर की पहली पंक्ति यूँ पढ़े-
तू अज़मतों पे अपनी एतबार करके देख,
और चौथे शेर को यूँ पढ़े –
उनका, जो तेरे हक़ पे खेमे गाड़ रहें हैं,
बिखरेगा ताम-झाम, ज़रा आंख तो उठा!
हंस जी के भरत-चरित्र काव्य पर शोध कार्य हो रहा है यह जान कर अत्यन्त प्रसन्नता हुई, हार्दिक बधाई|
कुछ रुबाइयाँ
है अभी ताव मुझमें और गम उठाने की;
कोशिशें कर, तू मुझे और अजमाने की|
ये तेरी जिद कि मेरी आंख में आंसू देखे;
ठान ली मैंने भी हर हाल मुस्कराने की||
मेरे दिल को जो चुभें, तीर बनाकर देखो;
दर्द को तुम मेरी तकदीर बनाकर देखो|
मेरे आज़ाद खयालों को बांधना चाहो;
जाओ, तुम कैसी भी जंगीर बनाकर देखो|
क्या फ़रेबो ज़ुल्म को अच्छा कहा करूँ;
क्या अब सुगलाती रेत को दरिया कहा करूँ!
इंसान से गायब हुए, इंसान के आमाल;
क्या अब ‘मधु’ हैवान को इंसां कहा करूँ!
मुर्शिदों का एक सा होता नसीब;
ढो रहे, हम भी अपना सलीब|
दोस्त मिलता आज ढूंढे से नहीं;
कल नहीं होगा कोई अपना रकीब|
डॉ. मधु चतुर्वेदी
No comments:
Post a Comment