दर्पण-यथार्थ का
मेरी आँखों के आगे
फिर था दर्पण
यथार्थ का दर्पण
जो दिखा रहा था झलक समाज की
उस समाज की
जिसकी मैं थी एक इकाई
और उसे देखकर
हुआ मुझे कुरूपता का एहसास !!
मंजु ऋषी की कविता भ्रम के नक़ली दर्पणों को तोड़ती ,मन के यथार्थ -दर्पण की ओर अग्रसर है !
यथार्थ मेडिटेशन इंटर्नेशनल यथार्थ के ऐसे ही दर्पणों का खुदरा और थोक का व्यापारी है ,जिनमें
चेहरे नहीं रूह प्रतिबिंबित होती हैं !
यथार्थ मेडिटेशन इंटर्नेशनल के आध्यात्मिक आमंत्रण और बधाई स्वीकारें ! ..प्रशांत योगी
मेरी आँखों के आगे
फिर था दर्पण
यथार्थ का दर्पण
जो दिखा रहा था झलक समाज की
उस समाज की
जिसकी मैं थी एक इकाई
और उसे देखकर
हुआ मुझे कुरूपता का एहसास !!
मंजु ऋषी की कविता भ्रम के नक़ली दर्पणों को तोड़ती ,मन के यथार्थ -दर्पण की ओर अग्रसर है !
यथार्थ मेडिटेशन इंटर्नेशनल यथार्थ के ऐसे ही दर्पणों का खुदरा और थोक का व्यापारी है ,जिनमें
चेहरे नहीं रूह प्रतिबिंबित होती हैं !
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