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Sunday, March 27, 2011

कविता की भीनी-भीनी गंध

आदरणीय नीरवजी! पालागन.  मैं आपका अति आभारी हूँ. एक नया प्रयोग  आपको पसंद आया . ये सब आपके प्रसादतर ही है. मैं तो केवल एक जरिया हूँ. 
पूनम दहियाजी  की कविता के बोल बड़े ही मार्मिक एवं सामयिक दिशाबोधक हैं. बहुत अच्छी लगी. और लिखिए. बधाई . आपकी निम्न पंक्तियाँ अच्छी लगी-
कभी सैकड़ों हाथों की मिलती हैं दुआएं,
कभी एक जोड़ी हाथ को तरसा जाती है.
अभी-अभी आपकी कविता- नया आसमान दो, भी पढ़ी. बहुत पसंद आई. बधाई.
गुडिया सिंहजी  की कविता बेहतरीन है, आपकी निम्न लाइन पसंद आईं.
कुछ भीषण हुंकार करो,
इस जीवन का विस्तार करो.
बहुत-बहुत बधाई.
नित्यानंद तुषारजी  की गजल का तो जबाव ही नहीं . बहुत सुन्दर गजल. बधाई.
पंकज अंगारजी की कविता भी बेहतरीन है, मैं उन्हें भी बधाई देता हूँ. 

भगवान सिंह हंस

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