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Sunday, March 27, 2011

दो शेर तुषार के

यही मेरी हक़ीक़त है अजब किस्सा रहा हूँ मैं
किसी के साथ रहकर भी बहुत तन्हा रहा हूँ मैं

ये माना फ़ासला है अब मगर ये बे-रुखी कैसी
ज़रा सोचो कभी तो रेशमी रिश्ता रहा हूँ मैं - -
नित्यानंद `तुषार`

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