Search This Blog

Wednesday, March 16, 2011

जो रो कर जग में आता है कविता

कविता-

कल्पनाओ के मंदिर में
सपनो का पुजारी
भावनाओ के कोमल पंखुड़ियों से
उम्मीदों के फूल खिलाता है
कोई भला क्या समझ सकता है
एक कवि हकीकत के धरातल पर
न जाने कितने कष्ट उठता है
पर अपनी आंसुओ में डूबी
गहरी मुस्कराहट से जाने कितनो को हँसता है
जो सामने तो मुस्कराता है
पर तन्हाई में आंसू बहाता है
कहाँ कोई कवि के ह्रदय की वेदना को
संवेदना दे पाता है
क्यों कोई कवि पागल कहलाता है
जो भावनाओ का बादल बन जाता है
वही कवि और कविता को समझ पाता है
हर कोई इतिहास दुहराता है
हर युग में कवि
समाज का दर्पण बन जाता है
जीवन का समर्पण कहलाता है
जो रो कर जग में आता है
पर हँसता हुआ योगी बन जाता है


अरविन्द योगी

No comments: