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Thursday, March 10, 2011

बृहद भरत चरित्र महाकाव्य


बाल्मीकी आश्रम में शत्रुघ्न--
अर्घ्य पाद्य स्वीकारो मेरा। करो यहाँ सुत रैन बसेरा । ।
रघुकुलियों का यह घर सारा। सौम्य! करो फल मूलाहारा। ।
महर्षि बाल्मीकी ने कहा , कुमार! मेरा अर्घ्य-पाद्य स्वीकार करो और पुत्र यहीं रैन बसेरा करो। यह घर रघुकुलियों का ही है। हे सौम्य! ये फल-मूल का आहार करो।
निकट एक यग्य यूप निहारा। महर्षि से पूछे सुकुमारा। ।
किसका है यह यूप महाना। कौन राजा यहाँ यजमाना। ।
शत्रुघ्न ने पास में एक यग्य यूप देखकर महर्षि से पूछा , यह महान यग्य यूप किसका है। यह कौन राजा यजमान था।
महर्षि कहि यहाँ पूर्व काला। एक नरेश बहु वैभव वाला। ।
सुदाम सुनाम धर्म स्वरूपा। उसका ही सोहि यग्य यूपा। ।
महर्षि बाल्मीकी ने कहा, पूर्व काल में यहाँ एक राजा बहुत वैभवशाली था। धर्मस्वरूप उसका नाम सुदास था। उसका ही यह यग्ययूप शोभित है।
तिहार पूर्वज वह भूस्वामी । तासु सुत सौदास बहु नामी। ।
बचपन में हि वह शूरवीरा। शिकार हेतु चला ले तीरा । ।
वह भू - स्वामी तुम्हारा ही पूर्वज था। उसका पुत्र सौदास राजा बना जो बहुत विख्यात था। बचपन से ही वह बड़ा शूरवीर था। एक दिन वह शिकार के लिए तीर लेकर वन में चला गया।
दो दैत्य वन में महाकाया। बाघरूप धरि मृग बहु खाया। ।
सहस्रों हिरन किए हलाला। बना मृग शून्य वन तत्काला। ।
वन में उसको महाकाय दैत्य मिले। उन दैत्यों ने बाघरूप धारण कर लिया। उन्होंने बहुत-से हिरण खा लिए। उन्होंने हजारों हिरण हलाल करके वन को हिरणविहीन कर दिया।
वीर सह ने राक्षस निहारा । क्रोधकर वह तुरत संहारा। ।
दूज ने सौदास दुत्कारा। पापी वह निरपराध मारा। ।
वीरसह (सौदास) ने राक्षस देखा और सरोष उसका तुरंत संहार कर दिया। दुसरे राक्षस ने सौदास को दुत्कारा। पापी ! वह मेरा साथी बिना अपराध के तूने मार दिया।
शेष फिर ---
रचयिता --भगवान सिंह हंस
प्रस्तुतकर्ता --योगेश

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