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Tuesday, March 15, 2011
आप और तिवारीजी बधाई के हकदार हैं।
आदरणीय नीरवजी,
आपकी टिप्पणी पढ़ी। आप कविता के साथ-साथ विज्ञान की भी अच्छी जानकारी रखते हैं. ये जानकर प्रसन्नता हुई। इन पंक्तियों से काफी जानकारी मिली। आप और तिवारीजी बधाई के हकदार हैं।
खूब समझाया है आपने-
लेमार्क और डार्विन के सिद्धांतों केसंबंध में जहां तक मेरी समझ हैतो ये दोनों ही सिद्धांत एक दूसरेके पूरक हैं। विरोधी नहीं। यदिडार्विन भीतर की बात करते हैंयानि डीएनए की तो लेमार्कपरिवेश की बात करते हैं। यानिकी बाहर की। उनका जोर इस बातपर है कि बाहरी वातावरण,जिसमेंकि जलवायु भी शामिल है भीतरके परिवर्तन का कारक बनता है।जैसे रेगिस्तान में रहनेवाले ऊंटऔर जिराफ की गर्दन इसलिएलंबी होती है क्योंकि उन्हें अपनाभोजन ऊपर और ऊंचे पेड़ों से प्राप्तकरना पड़ता है। रेगिस्तान में घासकहां मिलती है। इसलिए उनकीगर्दनें पीढ़ी-दर-पीढ़ी लंबी होतीचली गईं। यानिकि डीएनए परबाहरी वातावरण ने भी प्रभावडाला। दूसरी तरफ आदमी की पूंछइसलिए विलुप्त होती चली गईक्योंकि उसने पेड़ पर रहना ही बंदकर दिया। वैसे रडीमेंट्री पूंछ मानवके भी जन्म के समय होती है।यानीकि लेमार्क का सिद्धांत यूजएंडडिस्यूज की थ्योरी पर आधारितहै।
ओ चांडाल
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