सफ़ेद-पोशी तेरा ऐतबार जाता है
अगर चराग़ हवाओं से हार जाता है।
कदम बढाने में ख़तरा है मौत का लेकिन
मैं लौटता हूँ तो सारा वकार जाता है।
करैं नसीब का शिकवा या मौसमों का गिला
बदल के रास्ता, अब्रे-बहार जाता है।
मैं अपना लहज़ा तो तब्दील कर नहीं सकता
बला से जाए, अगर कारोबार जाता है।
मुनव्वर राना
प्रस्तुति- मृगेन्द्र मक़बूल
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