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Sunday, March 6, 2011

हे मेरे मन के मधुमास.

कविता-
हे मेरे
मन के मधुमास.

कोमल अधरों पर मृदु छाया
जीवन की श्रृंगारिक काया
नयनों की
नव मंजुल आस.
हे मेरे
मन के मधुमास.

बंधी हुई रश्मि पलकों पर
अम्बर की आभा अलकों पर
जीवन का चंचल परिहास
हे मेरे
मन के मधुमास.

अलक खोल नाचे मधुबाला
नयनों में भर परिमल हाल
बुझा रही
भावों की प्यास
हे मेरे
मन के मधुमास.

प्यास संचयन बनी अधूरी
ज्यों झरती हो सांझ सिन्दूरी.
थम गया उर का उल्लास
हे मेरे
मन के मधुमास.


-- डॉ. हरीश अरोड़ा

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