मृणाल पांडे ने विष्णुभट्ट गोडसे की पुस्तक का अनुवाद किया है,वो भी हिंदी में। जबकि इसका अनुवाद तो बहुत पहले अमृतलाल नागरजी कर चुके थे। पहली बात तो यह कि अनुवाद हो चुकी पुस्तक का दुबारा अनुवाद क्यों जरूरी था और क्या मृणाल पांडे नागरजी से अच्छा अनुवाद कर सकती हैं। या सिर्फ यह एक-दूसरे को अनुगृहीत किये जाने का खेल है। और सबसे बुरी बात यह कि मृणाल द्वारा नागरजी की कहीं चर्चा नहीं की गई। यह भूल तो नहीं हो सकती। बड़े लोगों के बड़े खेल हैं. और क्या कहा जाए। ऐसे कृत्य की निंदा बहुत जरूरी है। पथिकजी ने अच्छा काम किया है। बधाई..
डॉक्टर मधु चतुर्वेदी
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