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Friday, April 29, 2011

जीवन

जीवन
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जीवन को निस्प्रह भाव से
चुकते नही
महज़ बीतते देखने में भी आनंद होता है
किसी ने कहा,
मैं सन्नाटा बुनता हूं
तो किसी के जीवन का अंतिम सत्य सिर्फ
जीवन होता है,
क्या हो सकते थे ?
पर, क्या हो सके? हम
के बीच ही कहीं
निराशा, हताशा,विरक्ति,वैराग्य,हार
और जीत का संतुलन बिंदु होता है
सच पूछिए तो जीवन स्वयं के द्वारा स्वयं के लिए
तय की गयी
शर्तों - सीमाओं के बीच किए गए
कर्म के फल को
भाग्य के अंक से गुणन कर प्राप्त की गयी संख्या का
गुणन

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