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Sunday, April 10, 2011

प्रशांत को नीरव होकर ही समझा जा सकता है,

अहो भाव से भरे मन  पर आलेख बहुत ही बेहतरीन है. मेरे मन को नीरव-प्रशांत के आँचल में बैठकर जो आनंदानुभूति का सहज दर्शन हुआ उसको वर्णित करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं. ऐसा दर्शनज्ञान कोई और नहीं सिर्फ शब्दऋषि आदरणीय श्री नीरवजी  ही दे सकते हैं. उन्होंने सत्य ही कहा है कि -प्रशांत को नीरव होकर ही समझा जा सकता है, मुझे तो नीरवता ही  गुरुवर लगती है क्योंकि जैसे मारने वाले से बचाने वाला श्रेष्ठ है, पूजनीय है वैसे ही बनाने वाले से  समझने वाले. उन्हें बार-बार बधाई देता हूँ और प्रशांतजी को भी बधाई देता हूँ जो उन्होंने इतने सारगर्भित भाव-व्यंजित करके श्रीनीरवजी की कविता का सटीक दर्शन कराया है. मैं  आग्रह करता हूँ कि वे आगे भी ऐसे दर्शनज्ञान देते रहे. पालागन. जयलोकमंगल.

 

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