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Sunday, April 10, 2011

मैं भी ऐसा नहीं जैसा कि नज़र आया मैं ,

ग़ज़ल-
तेरे नज़दीक गया और पलट आया मैं ,
मेरी मजबूरी है तेरी बात न रख पाया मैं ,

तुझको खोके मैं बहुत खुश हूँ , नहीं है ऐसा ,
मुझको अफ़सोस है तुझको न समझ पाया मैं ,

मेल पढ़कर के तेरी ख़ुद से ही नाराज़ हूँ मैं ,
मैं भी ऐसा नहीं जैसा कि नज़र आया मैं ,

कुछ ग़लतफ़हमी हुई ऐसी कि सच, झूट लगा ,
जो कि सच्चा था उसे सच्चा न कह पाया मैं ।
नित्यानंद तुषार

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