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Thursday, April 28, 2011

कुछ कुछ मन की मन से






आदरणीय श्री नीरवजी! पालागन. आपकी तनिक कृपा द्रष्टि ही  मेरे लिए आशीर्वचन है. वही मेरी कलम व लेखन की दायित्री है जिस  त्रिवेणी में  त्रिगुण धाराओं का संगम होता है. जनगण उसमें गोता मारकर  उसके  रसानंद  का रस पान करके अपनी इला   यानी वाणी (मनोकामना) को आबाद करता है  और जब इला  आबाद हो जाती है तो उसी उर्वरता   की महक    में जनगण चिल्ला  चिल्लाकर   खुश होकर कहता है  कि इला ,अहा, आबाद तो वहीँ पर   इला +अहा  + आबाद =इलाहबाद     का निर्माण हो जाता है और वही आशीर्वचनरुपी त्रिवेणी पूजनीय हो जाती है. एक संगम बन जाता है. मैं तो उस त्रिवेणी के बंक पर बैठा उस त्रिगुणी लहरों के मिलन (संगम ) की ओर उत्सुक मन से अपेक्षा कर रहा हूँ कि उन लहरों का झोंका तनिक पास आये जिसका रस पान मैं भी कर सकूँ. पालागन.  

                     
                                                                      आदरणीय श्री गौड़जी आपकी जबरदस्ती के जबरदस्त शेर जबरदस्त पसंद आये. मैं उनकी जबरदस्त
आदरणीय श्री गौड्जी आपकी जबरदस्ती के जबरदस्त शेर जबरदस्त पसंद आये. मैं उनकी जबरदस्त सराहना करता हूँ. आपको नमन करता हूँ. आपकी निम्न पंक्तियाँ बहुत पसंद आयीं -

एक उम्र आती है जब हम बोल नहीं सकते,
जड़े हुए  ताले होठों पर खोल नहीं सकते .                                            




आदरणीय राजमणिजी आपकी गजल बहुत आच्छी लगी. बहुत-बहुत बधाई






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