Search This Blog

Wednesday, April 20, 2011

आँसुओं को पोंछने वाला उसी का रूमाल

हर कोई ऑफिस अलग उद्देश्य से जाता है,
ऑफिस जाने का जीवन से गहरा नाता है!
कोई ऑफिस में अजीविका कमाने जाता है,
कोई वहां अपनी तृष्णा मिटाता है,
कोई ऑफिस में जाकर किस्से सुनाता है,
...बिना कुछ काम किये खुद को थका हुआ बताता है,
मगर जो भी ऑफिस जाता है,
वो ऑफिस को घर से ज्यादा प्यारा बताता है...।
गौरव सिंह
ना ज़मीन, ना सितारे, ना चाँद, ना रात चाहिए,
दिल मे मेरे, बसने वाला किसी दोस्त
का प्यार चाहिए,
ना दुआ, ना खुदा, ना हाथों मे कोई तलवार चाहिए,
मुसीबत मे
...किसी एक प्यारे साथी का हाथों मे हाथ चाहिए,
कहूँ ना मै कुछ, समझ जाए वो सब
कुछ,
दिल मे उस के, अपने लिए ऐसे जज़्बात चाहिए,
उस दोस्त के चोट लगने पर हम
भी दो आँसू बहाने का हक़ रखें,
और हमारे उन आँसुओं को पोंछने वाला उसी का रूमाल
चाहिए,ष
संजय मेहता

No comments: