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Monday, April 4, 2011

ख़ूबसूरत ख्व़ाब से बढ़कर कोई धोखा नहीं

ग़ज़ल-
मैंने कुछ समझा नहीं था तुमने कुछ सोचा नहीं
वरना जो कुछ भी हुआ है वो कभी होता नहीं

उससे मैं यूँ ही मिला था सिर्फ मिलने के लिए
उससे मिलकर मैंने जाना उससे कुछ अच्छा नहीं

आप मानें या न मानें मेरा अपना है यक़ीन
ख़ूबसूरत ख्व़ाब से बढ़कर कोई धोखा नहीं

जाने क्यूँ मैं सोचता हूँ उसको अब भी रात दिन
मेरी ख़ातिर जिसके दिल में प्यार का जज़्बा नहीं

मेरी नज़रों से जुदा वो मेरे दिल में है 'तुषार'
वो मेरा सब कुछ मैं जिसकी सोच का हिस्सा नहीं - -
नित्यानंद `तुषार`

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