श्री भरत की आरती
ॐ जय श्री भरत हरे, जय श्री भरत हरे.
प्रजा जनन के संकट, पल में दूर करे .
भक्तजनन के कारन, वन में भक्ति करी.
श्रद्धा त्याग ह्रदय में, खडाऊं पूजि हरी .
विकट समस्या धरनि पै, भरत लाल पाता.
भ्रात्र भाव भुवन में, रघुकुल प्राण गाता.
गन्धर्वों को हराकर, अभय धरनि दीना.
सुरमुनिजन सब हर्षित, पावनभवन कीना.
लालच लोभ न मन में, नंदी ग्राम गए.
तन प्रक्षालन कीना, माँ को तार गए .
राखि मर्यादा कुल की, राम राम दाता.
धर्म स्थापना कीनी, जन जन गुण गाता.
भ्रात्र प्रेम का टीका, भरत भाल सोहे.
वासुकि नाग जु धावै, सूँघत मन मोहे.
भरत नाथ की आरति, जो कोई जन गावै.
रिद्धि सिद्धि घर आवै, औ, इच्छित फल पावै.
महाकाव्य रचयिता
प्रस्तुतकर्ता - योगेश विकास
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