आज मदर्स डे है। उन लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण दिन जो साल में सिर्फ एक दिन अपनी मां को भी याद करते हैं। अच्छा हो हम उन अमर शहीदों को भी याद कर लें जो भारत मां की आन-बान-शान के लिए आज के ही दिन शहीद हो गए थे। मास्टर अमीर चंद,मास्टर अवध विहारी, भाई बाल मुकंद और बसंत कुमार विश्वास को वायसरॉय लार्ड लारेंस की शोभा यात्रा पर चांदनी चौक में बम फेंकने के जुर्म में आज के ही दिन फांसी दी गई थी। इन वीर शहीदों को सादर नमन..
पंडित सुरेश नीरव
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डॉक्टर विपिन चतुर्वेदीजी..
आपने अपनी पोस्ट में कहा है कि-
पिंजोर के आयोजन की रिपोर्ट पढ़ी। डॉ. मधु बरुआ और नीरवजी को इस आयोजन में सम्मिलित होने के लिए बधाई। मैं जानने को उत्सुक हूँ की स्वास्थ्य मंत्रालय औए उच्चा शिक्षा विभाग की और से मेडिकल की शिक्षा हिंदी में हो, इस विषय पर क्या चर्चा-परिचर्चा हुई अथवा क्या लेख पढ़े गए। इस विषय पर मैं दो बातों की और ध्यान आकर्षित करना चाहूंगा ।
गढ़वाल विश्व विद्यालय के पाठ्यक्रम में यह स्पष्ट कियागया है की मेडिकल और पारामेडिकल शिक्षा का माध्यम केवल अंग्रेजी होगा। देश के अन्य विश्व विद्यालयों में भी ऐसी ही बाध्यता होगी.
गढ़वाल विश्व विद्यालय के पाठ्यक्रम में यह स्पष्ट कियागया है की मेडिकल और पारामेडिकल शिक्षा का माध्यम केवल अंग्रेजी होगा। देश के अन्य विश्व विद्यालयों में भी ऐसी ही बाध्यता होगी.
तो िस संदर्भ में कहना चाहूंगा कि पिंजोर के राजभाषा शिविर में सरकारी कामकाज में हिंदी को कैसे बढ़ावा दिया जाए मुख्यतः इसी मुद्दे पर चर्चाएं हुईं। और जो मुद्दा आपने उठाया है उस की जानकारी न होने के कारण इस पर कोई चर्चा नहीं हुई। यह देश का दुर्भाग्य है कि हिंदी के नाम पर 68 साल से पाखंड करनेवाली सरकार अपने देश की तकनीकी शिक्षा को आज भी हिंदी में देने के लिए ईमानदारी से प्रतिबद्ध नहीं है। और आप-जैसे लोग जो तकनीकी शिक्षण में हिंदी के लिए इतने प्रयासरत हैं, उनके श्रम का अपमान करती हैं ये असंवेदनशील सरकारें और उनके पालतू संस्थान।
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मृगेन्द्र मकबूलजी,
श्री प्रकाश मिश्र की ग़ज़ल बहुत बढ़िया है। अच्छा हो कि आप उनका फोटो भी उपलब्ध कराएं ताकि जयलोकमंगल के साथियों को उनकी छवि भी देखने को मिल सके। ये शेर लाजवाब हैं-
जिनमे जलाया करते थे तहज़ीब के दिए अब वो पुराने वक्त के खंडहर नहीं रहे।
लोगों ने शीश दान दिए, मुल्क के लिए
अब टोपियाँ बहुत हैं मगर सर नहीं रहे।
इस कांच के लिबास की औकात ही है क्या
मिटटी में मिल के शाह सिकंदर नहीं रहे।
प्रकाश मिश्र
आप सभी को मातृदिवस के शुभ अवसर पर मां की मीठी स्मृतियां तोहफे में दे रहा हूं।
पंडित सुरेश नीरव
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