अपने में ऐसा पहला महाकाव्य जिसमें अन्य विशेष भक्ति भाव एवं सान्निध्यता के साथ सूर्यवंश यानी इक्ष्वाकुवंश की १२१ पीढ़ियों का विस्तृत उल्लेख और दशरथनंदिनी शांता का भी विशेष वर्णन है, इस महाकाव्य पर प्रकाशित होते ही कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में पहला शोध करके एक अनूठी लोकप्रियता और पहचान बनी. कितने घरों में मनुजजन इसका नियमित पाठ कर रहे हैं.
भरत चरित्र महाकाव्य के प्रसंग आपके दर्शनार्थ --
जल में घुसे आचमन कीना. साथहि भरत शत्रुघ्न लीना.
द्रष्टि से ओझल भ्राता. जय जयकार चहुँ जन सुनाता .
प्रभु श्रीराम अपने साथ भरत और शत्रुघ्न को लेकर सरयु के जल में घुसे और पावन जल का आचमन किया. वे सरयु के पावन जल में आगे बढ़ते गए और वे तीनों भ्राता द्रष्टि से ओझल हो गए. चारों ओर जय जयकार मनुज करने लगे.
इंद्र अग्नि नभ विराजमाना. तुरत प्रभु स्तुति की ससम्मान .
गरुड़ अप्सरा दिव्य सु नागा. दैत्य दानव यग्य समभागा .
उस समय इंद्र और अग्नि आकाश में विराजमान हैं. उन्होंने तुरंत प्रभु श्रीराम की ससम्मान स्तुति की. गरुड़ , अप्सरा, दिव्यनाग, दैत्य, दानव आदि सबने श्रीराम के इस पावन यग्य में सामानरूप से भाग लिया.
ऋषि, मुनि संत महर्षि महात्मा. सुजन समुदाय द्रग परमात्मा.
शतशः दें प्रभु को साधुवाद . सफल मनोरथ जन आह्लादा.
ऋषि , मुनि, संत, महर्षि, महात्मा , सुजन आदि के समुदाय परमात्मा को देखते हैं और वे प्रभु को शतशः साधुवाद देते हैं. और कहते हैं कि आपने अपना मनोरथ सफल किया और जन-जन का आह्लाद किया.
विष्णुरूप में विराजमाना. राम भरत शत्रुघ्न महाना.
राम ब्रह्म से कहिं सोल्लासा. दीजे इन्हेंहि सुलोकवासा.
अब महान राम, भरत और शत्रुघ्न विष्णुरूप में विराजमान हो गए. राम ने प्रसन्न होकर ब्रह्माजी से कहा कि हे ब्रह्म! ये सब जो मेरे साथ आये हैं इन्हें सुलोकवास दीजिये.
क्योंकि सब सनेह साथ आए. मेरे ही प्रिय भक्त कहाए.
उन सबने लोकहि सुख त्यागा. मम अनुग्रह के पात्र भागा.
क्योंकि ये सब मेरे साथ सस्नेह आए हैं. ये मेरे ही प्रिय भक्त कहलाते हैं. इन सभी ने भी म्रत्युलोक का सुख त्याग दिया है. ये सब मेरे ही अनुग्रह के पात्र हैं.
ऐसा सुनकर राम से, लोक पितामह टोक.
जो जन आए यहाँ पर, मिलि संतानक लोक.
राम से ऐसा सुनकर लोकपितामह ब्रह्माजी ने कहा कि जो जन यहाँ पर आए हैं वे सब संतानक लोक में जायें.
महाकाव्य प्रणेता
प्रस्तुति --योगेश विकास
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