डा० मधु चतुर्वेदीजी! प्रणाम, आपकी गजल बेहतरीन है, बधाई.निम्न शेर बहुत पसंद आया-
तेरे हाथों से छूटे, तेरी चाहों के नटखट पंछी.
मेरे दिल की नाजुक टहनी पर डेरा दाल अड़े बैठे.
टहनी नाजुक नहीं, वह रसभरी है जो,
इसलिए तो जोंक से छुपके सटे बैठे ,
( हंस )
पालागन जनाव, आपकी गजल की महकती गंध-सुगंध मन को आनंदित कर देती है, बधाई .. निम्न शेर बहुत अच्छा लगा .
हकीकत से ये बचता है हमेशा
मगर झूठों से रिश्ता जोड़ता है.
झूंठ के आँचल पर पला है जो,
झूंठ पर चल सच को तोड़ता है.
कर्नल विपिन चतुर्वेदीजी , नमस्कार, आपका गीत लाजबाव है, मार्मिक एवं गहराई से अन्तः में उतरता है. बधाई. निम्न पंक्तियाँ अच्छा लगी.
गीतों पर मैं बलिदान अभी तक कर देता युग तक को
यह युगों युगों तक गूंजेगा जो गीत सुनाऊंगा तुमको.
उस गीत की उत्सुकता में बैठे द्रष्टि जमाये हम ,
वह गीत आकर कब सुनायेंगे हमको सनम.
( हंस )
( हंस )
पथिक्जी प्रणाम , आपकी ललकार गीत के जारी सुनी मजा आ गया. यह गीत ही नहीं बल्कि क्रांति की एक चिनगार हैं जो प्रचंड आग का सोला बनकर फूट सकता है और वह भ्रष्टता एवं मक्कारता को दाह कर सकता है यदि जन मानुष उस पर चले . ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी -
जैसे पाखंडी मक्कार आज है कर्णधार.
उनसे तो अंग्रेजी राज ही अच्छा था.
सच से बहुत दूर हैं ये कर्णधार,
इसलिए सब कुछ है बंटाधार .
(हंस )
जय लोकमंगल
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