बलशाली का शासन संगत ही बस जब युग का दर्शन था
बेबस घुट रही कराहों की लय पर आंसू का नर्तन था।
तुम आतंकित होजाते थे, केवल मुंह ढक रो पाते थे।
अत्याचारी के कृत्यों पर आंसू भर भर रह जाते थे।
तुमको मैंने आदेश दिए तब समरभूमि के प्रांगण में
भर दिया ओज, भर दिया जोश, कंचन ,कविता में कण कण में ।
सूखे अधरों हंस पाना भी जब जन जन का संघर्षण था।
तब कविता मदिर विलास न थी, तब जन जन का कवि भूषण था ।
तब तलवारों से लिखा काव्य, भेंटा भारत के वीरों को ।
यह युगों युगों तक गूंजेगा जो गीत सुनाऊंगा तुमको ।
बेबस घुट रही कराहों की लय पर आंसू का नर्तन था।
तुम आतंकित होजाते थे, केवल मुंह ढक रो पाते थे।
अत्याचारी के कृत्यों पर आंसू भर भर रह जाते थे।
तुमको मैंने आदेश दिए तब समरभूमि के प्रांगण में
भर दिया ओज, भर दिया जोश, कंचन ,कविता में कण कण में ।
सूखे अधरों हंस पाना भी जब जन जन का संघर्षण था।
तब कविता मदिर विलास न थी, तब जन जन का कवि भूषण था ।
तब तलवारों से लिखा काव्य, भेंटा भारत के वीरों को ।
यह युगों युगों तक गूंजेगा जो गीत सुनाऊंगा तुमको ।
(क्रमशः)
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