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Wednesday, May 25, 2011

बृहद भरत चरित्र महाकाव्य

बृहद भरत चरित्र महाकाव्य (टीका सहित) कुल  पेज -७३६. कुछ प्रसंग आपके दर्शनार्थ -

 शत्रुघ्न मदुरा (आधुनिक मथुरा ) लवणासुर को मारने हेतु  जाते समय जिस रात को वाल्मीकि आश्रम में ठहरे थे उसी रात को कुश और लव का जन्म होता है- 

सुमंगलगीत आश्रम सोहें. नवजात सर्व जन मन मोहें.
जुड़वां बाल दोउ उत्पन्ना. जच्चा ठीक अन्तः प्रसन्ना.

नारियों के सुन्दर मंगलगीतों से आश्रम शोभित होने लगा. नवजात बालक सबके मन को मोहने लगे. दोनों बालकों ने जुड़वां जन्म लिया है. जच्चा सीता कुशल है और अन्तः में बहुत प्रसन्न है.

कुशा से स्वच्छ बड सूत कीना. तासु नाम कुश शुभ रख दीना.
लव से मार्जन लघु ने पाया. तासु   नाम   लव   जगत सुहाया.

महर्षि ने जिस बड़े बालक को कुश (दूब ) से स्वच्छ किया, उसका शुभ नाम कुश रखा और जिस छोटे बालक का मार्जन लव ( मिटटी ) से किया उस बालक का शुभ नाम लव  रखा जिससे सारा जगत सिहाया. क्योंकि दोनों बालकों का जन्म मूल नक्षत्र में हुआ था.

महर्षि एकाग्रचित निष्पापा. बालों  के  हरते   संतापा.
होंगे ये सु नाम विख्याता. रघुकुल का शुचिवंश सुहाता. 

वाल्मीकि एकाग्रचित और निष्पाप महर्षि  हैं. बालकों के सारे संताप मूलादि दूर करते हैं. उन्हें मालुम है कि ये दोनों बालक अपना सुन्दर नाम विख्यात करेंगे. यह रघुकुल का पवित्र वंश शोभित है .

नारि गाए  मंगल  अभिरामा. ले  ले नाम सीय श्रीरामा.
और कुलगोत्र शुचि उच्चारा. शत्रुघ्न के कर्ण पडा प्यारा.

नारि सीता और श्रीराम का नाम ले लेकर सुन्दर मंगलगीत गा रही हैं और वे कुलगोत्र का भी उच्चारण कर रही हैं. ये प्यारे शब्द शत्रुघ्न के कान में पड़ जाते हैं.

दोउ सुत होने का संबादा. सुन  शत्रुघ्न हुए आह्लादा.
तुरत पूछ पहुँच पर्णशाला. माता कहि पूछा सब हाला.

दोनों पुत्र होने कि बात जब शत्रुघ्न ने सुनी तो वे बहुत प्रसन्न हुए और वे तुरंत पूछकर पर्णशाला पहुँच गए. उन्होंने  सीता  से  सब कुशलता पूछी.

कर प्रणाम शत्रुघ्न कहि, सावन की  यह रात .
कितना सौभाग्य मेरा, प्रसन्न सब मम गात.

शत्रुघ्न ने सीता को प्रणाम किया और कहा कि श्रावण  की यह रात मेरे लिए  कितनी सौभाग्यशाली है. मैं  बहुत प्रसन्न हूँ.

         महाकाव्य प्रणेता     
      










प्रस्तुति -योगेश विकास

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