अब देख रहा हूँ, तुम पीड़ित ,दुनिया का कण कण पीड़ित है ।
थक गए गीत , पीड़ित संगीत , कवि की कविता उत्पीडित है।
वृक्षों में मानो जान नहीं, हरियाली लगती लुटी हुई
आंसू में डूबे नयन , कंठ में बेकल वाणी घुटी हुई ।
अधरों पर है मुस्कान, किन्तु वेदना छुपाये अंतर में ,
बूढ़ा समाज का ढांचा है,झुर्रियां पड़ीं तन जर्जर में ।
वीणा के खोये स्वर सारे, होगये तार टुकडे टुकडे ।
कुछ लोग चाहते पहिनाना गीतों के शव को स्वर्ण कड़े ।
लोहे के काले फंदों में चाहते जकड़ना युग कवी को ।
यह युगों युगों तक गूंजेगा जो गीत सुनाऊंगा तुमको
थक गए गीत , पीड़ित संगीत , कवि की कविता उत्पीडित है।
वृक्षों में मानो जान नहीं, हरियाली लगती लुटी हुई
आंसू में डूबे नयन , कंठ में बेकल वाणी घुटी हुई ।
अधरों पर है मुस्कान, किन्तु वेदना छुपाये अंतर में ,
बूढ़ा समाज का ढांचा है,झुर्रियां पड़ीं तन जर्जर में ।
वीणा के खोये स्वर सारे, होगये तार टुकडे टुकडे ।
कुछ लोग चाहते पहिनाना गीतों के शव को स्वर्ण कड़े ।
लोहे के काले फंदों में चाहते जकड़ना युग कवी को ।
यह युगों युगों तक गूंजेगा जो गीत सुनाऊंगा तुमको
(क्रमशः)
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