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Friday, May 27, 2011

ज्ञान गीत


अब देख रहा हूँ, तुम पीड़ित ,दुनिया का कण कण पीड़ित है
थक गए गीत , पीड़ित संगीत , कवि की कविता उत्पीडित है
वृक्षों
में मानो जान नहीं, हरियाली लगती लुटी हुई
आंसू
में डूबे नयन , कंठ में बेकल वाणी घुटी हुई
अधरों
पर है मुस्कान, किन्तु वेदना छुपाये अंतर में ,
बूढ़ा
समाज का ढांचा है,झुर्रियां पड़ीं तन जर्जर में
वीणा
के खोये स्वर सारे, होगये तार टुकडे टुकडे
कुछ
लोग चाहते पहिनाना गीतों के शव को स्वर्ण कड़े
लोहे के काले फंदों में चाहते जकड़ना युग कवी को
यह
युगों युगों तक गूंजेगा जो गीत सुनाऊंगा तुमको

(क्रमशः)

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