Search This Blog

Monday, May 2, 2011

तुमने काजल लगाया आँखों में

तुमने काजल लगाया आँखों में
कहीं बरसात हो रही होगी।

चाँद जा कर छिपा घटाओं में
तेरी ही बात हो रही होगी।

तूने ज़ुल्फ़ों को यूँ बखेरा है
दिन में ही रात हो रही होगी।

उसने जलवों का ज़िक्र छेड़ा है
तू कहीं साथ ही रही होगी।

जशन उसने मनाया यारी का
फिर कोई घात हो रही होगी।

खेल मक़बूल से जो खेला है
शह पे यूँ मात हो रही होगी।
मृगेन्द्र मक़बूल

No comments: