भरत चरित्र महाकाव्य के कुछ प्रसंग आप तक --
जब शूर्पणखा ने रावण को रो रोकर बताया तो रावण का विमान हिल गया एवं उसकी आँखें लाल हो गयी और कहा -
सुन रावण का हिला विमाना. आँख लाल जस अग्नि समाना.
विनाश काल बुद्धि विपरीता. चाहे कोटि यत्न सुखनीता .
शूर्पणखा की बात सुनकर रावण का विमान हिलने लगा. रावण की आँखें अग्नि समान लाल हो गयीं. कहा जाता है कि विनाश के समय बुद्धि भी विपरीत हो जाती है चाहे सुखदाता कोटि यत्न करे.
सुरों के साथ बहु रण कीने. मेरे अंग पर वार क्षीणे.
विष्णु चक्र का किया प्रहारा. मैं रावण नहिं साहस हारा.
बहिन! मैं रावण हूँ. मैंने कभी साहस नहीं हारा है. मैंने सुरों के साथ बहुत युद्ध किये हैं. मेरे अंग पर उनके सभी वार क्षीण हो गए.देवताओं ने मुझ पर विष्णु चक्र का भी प्रहार किया है.
पाताल में वासुकि हराया. मम अंग से जलधि घबराया.
तक्षक नाग को भी हराया. उसकी पत्नी को हर लाया.
मैंने पाताल में वासुकि को हराया. मेरे अंग से जलधि भी घबरा गया. मैंने तक्षक नाग को हराया है और उसकी पत्नी को हरण करके ले आया.
कुबेर को बहु धन अभिमाना. हराकर लिया तासु विमाना.
इंद्र का सु नंदन वन तोड़ा. धर्म मार्ग में सदैव रोड़ा.
कुबेर को धन का बहुत अभिमान था. मैंने उसको हराकर उसका विमान छीन लिया. और मैंने इंद्र का सुन्दर नंदन वन तोड़ दिया. मैंने सदैव धर्म मार्ग में बिघ्न डाला है .
सुर दैत्य खग नाग गन्धर्वा. पिशाच से जु अभय संदर्भा.
रोकूँ चलते शशि दिनमाना. वायु भी रुके कर सम्माना.
देवता, दैत्य, खग, नाग, गन्धर्व, पिशाच आदि से भी मैं नहीं डरता हूँ.मैं रावण हूँ. मैं चलते हुए चन्द्रमा और सूरज को भी रोक सकता हूँ. वायु भी रूककर मेरा सम्मान करती है.
दस सहस्र वर्ष कटु तप, किया रहि निराहार.
दस बार ही सर बलि दी, ब्रह्म प्रसन्न अपार.
शूर्पणखा! मैंने बिना आहार दस हजार वर्ष कठिन तप किया है. और दस बार ही मैंने अपने सिर की बलि दी है. इससे मुझ पर ब्रह्मा बहुत प्रसन्न हुए.
महाकाव्य प्रणेता
प्रस्तुति --योगेश
No comments:
Post a Comment