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Wednesday, August 24, 2011

अन्ना से क्यों पंगा लिया


हास्य-व्यंग्य-
अन्ना और पुलिसिया सिपाही
पंडित सुरेश नीरव
भ्रष्टाचार प्रधान हमारा देश आजकल अन्नाप्रधान देश हो गया है। गूंगे भी अन्ना की प्रशंसा में धाराप्रवाह बोल रहे हैं। धाराप्रवाह बकवास में माहिर नेता गैस पर रखे कुकर में उछलते आलूओं की तरह अन्ना के समर्थन में भ्रष्टाचार को कोसने की प्रतियोगिता में वीरता चक्र हासिल करने पर आमादा हैं। और-तो-और भिखारियों की मंडली में भी फीलगुड की भावनाएं हिलोरें मारने लगी हैं। फुटपाथ पर बैठकर भीख मांगने और रात में सोने तक के लिए पुलिसवालों को पैसे देने पड़ते थे। जिन्हें बैठकर भीख मांगने के लिए ठीया नसीब नहीं था उन्हें जनगणना की ड्यूटी पर लगे सरकारी मास्टरों की तरह घर-घर जाकर भीख मांगनी पड़ती थी। वे भी इस गोल्डन सप्ताह में ठप्पे से रामलीला मैदान जाकर दो टाइम भरपेट इज्जत की रोटी तो क्या तबीयत से तरह-तरह के माल उड़ा रहे हैं। मुफ्ते माल दिल बेरहम। सब के सिर पर टोपी है,जिस पर लिखा है-मैं अन्ना हूं। ड्यूटी पर तैनात सिपाही उन्हें पहचानकर ऐसे देख रहा है जैसे कि बकरे को कसाई देखता है। वो गुस्से से बुदबुदाता है- अन्ना ने तो अपनी रोटी मर्ज़ी से छोड़ी मगर हमारी दिहाड़ी जबरदस्ती मार दी। सरकार भी निकम्मी है। हम तो बड़े से बड़ा केस ले-देकर हाल सुलटा देते हैं। यहां पूरी सरकार मिलकर भी एक अदद अन्ना को सैट नहीं कर पा रही। किरण वेदी मैडम तो अपने ही महकमें की दबंग अफसरों में रही हैं। वो भी कुछ नहीं कर पा रहीं। अरे अगर सरकार नहीं मान रही तो अन्ना को ही झुकाने की जुगत लगानी चाहिए। अपनी तो जब से यहां ड्यूटी लगी है रोज की दिहाड़ी मारी जा रही है। अन्ना तो फौज में रहे हैं उन्हें क्या मालूम पुलिस महकमें का दस्तूर। वो स्साला रामलाल ही फायदे में रहा। जिसकी यहां ड्यूटी नहीं लगी। सभी का हिस्सा अकेले ही डकार रहा होगा। रेड़ीवाले,तहबाजारीवाले सभी पर डंडा फिराकर उसने अपनी जन्माष्टमी तो खूब तबीयत से मनाई होगी। अपनी तो बांसुरी इस अन्ना ने बजा रखी है। अरे कानून व्यवस्था का काम पुलिस का है। हमने रातोंरात बाबा रामदेव को निबटा दिया। कैसे सलवार पहनकर भागा था। भागता कैसे नहीं। पुलिस के डंडे के आगे तो भूत भी लंगोटी छोड़कर भाग जाते हैं। ये सरकार तो खामख्वाह मामले को आगे बढ़ा रही हैं। हमारे महकमें पर ही विश्वास नहीं रहा सरकार का। तो खुद तो डूबेगी ही हमें भी जबरदस्ती उपवास करवाएगी। अरे अगर दम नहीं तो क्या जरूरत थी अन्ना से पंगा लेने की।  हमने कालू से हफ्ता बांध लिया कि नहीं। क्या फायदा लड़ाई-झगड़े में। दोनों का ही नुकसान होता है।  इस नासमझ सरकार की तो इज्जत खराब हो ही रही है हमारी भी उसने इज्त के चीथड़े उड़ा दिए। वर्दी में भी ऑन ड्यूटी बीड़ी खरीद के पीनी पड़ रही है। क्या चलेगी ये सरकार। अब तो पत्रकार भी इनकी रोज़ बखिया उधेड़ रहे हैं। हमारे थानेदार साहब मुहल्ले तक के पत्रकार को सैट रखते हैं। यह सरकार होकर भी कुछ नहीं कर पाई। न अन्ना को सैट कर पाई न पैस को। यह ज्यादा दिन नहीं चल पाएगी। क्या करू, अन्ना के साथ एक फोटो खिंचवा ही लूं। वक्त जरूरत काम आएगा।
आई-204,गोविंदपुरम,ग़ज़ियाबाद-201001
मोबाइल-09810243966

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