ताऊजी! चरणस्पर्श. ताऊजी आपने अन्ना और पुलिसिया सिपाही शीर्षक से एक करारा व्यंग्य कसा है.मजा आ गया. ताऊजी बात ऐसी है कि सरकार भी इसलिए अन्ना को सैट नहीं कर पा रही है क्योंकि रिश्वत नहीं चल रही है अन्ना तो रिश्वत/भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए ही अनशन पर बैठे है. आज १० दिन हो गए पर कोई कमबख्त नहीं हाथ लगा है.वहां सभी चोर-उचक्के, भीख मंगे, रेड़ीवाले, किन्नर, और तो और महारिश्वतखोर भी अन्ना के अनशन में आ रहे हैं क्योंकि रिश्वत न सही तो फ्री की तो मिल रही है .क्या उससे भी जायें, फ्री की ही नहीं बल्कि फ्री का सोना भी मिल रहा है नहीं तो पटरी पर सोने के लिए पुलिस को रिश्वत देनी पडती. परेशान है तो बेचारी पुलिस, क्योंकि उसे तो बीडी भी खरीदकर पीनी पड़ रही है और दो चार केले या पूड़ी छिपकर खानी पड़ रही है. बेचारे करें भी तो क्या.बेचारी पुलिस भी अपनी काफी जुगत में है कि किसी भी जुगाड़ से अन्ना से निपट जायें परन्तु ये जो सरकार है न बीच में. फैसला तो आखिरकार सरकार को ही करना है ,नहीं तो अब तक हम तो निपट लेते,और हमने भी तो अपने बच्चे पालने हैं, अरे इन खद्दरपोशियों ने पशुयों का चारा तक खा लिया. ये काहे को जनलोकपाल लायेंगे. अन्नाजी बस करो, आपकी तवियत बिगड़ रही है,बहुत हो गया, आप ७४ वर्ष के वृद्ध हैं, १० दिन से आपने कुछ नहीं खाया, इन कमबख्तों को मरने दो, आप क्यों मरने की सोचते हो, अभी तो आपने देश के लिए बहुत कुछ करना है. अन्नाजी ये तो दुनिया जान गयी क़ि आप मर्द है, ईमानदार है, आपने शादी नहीं की तो क्या परन्तु आपकी ये सारी संतान है जो आपके साथ खड़े हैं,आपकी कोई जातिपांति नहीं, आप तो कर्मवीर हैं. कर्म करो, मरने दो इनको, आप देश की खातिर जीवित रहिये, अभी आपकी जरूरत है, इनको और नंगे होने दो, फिर आगे देखना, कहाँ बचेंगे ये आपके सत्याग्रह स
आदरणीय पंडित सुरेश नीरवजी विख्यात शब्दपारिखी एवं व्यंग्यकार की कुछ पंक्तियाँ देखिये
-ये सरकार तो खामख्वाह मामले को आगे बढ़ा रही है .हमारे महकमें पर ही विशवास नहीं रहा सरकार का. तो खुद डूबेगी ही हमें भी जबरदस्ती उपवास करवाएगी. अरे अगर दम नहीं तो क्या जरूरत थीअन्ना से पंगा लेने की. हमनें कालू से हफ्ता बाँध लिया कि नहीं. क्या फ़ायदा लड़ाई-झगडे में. दोनों का ही नुकसान होता है. इस नासमझ सरकार कीतो इज्जत ख़राब हो रही है. हमारी भी इज्जत के चीथड़े उड़ा दिए. वर्दी में भी ऑन डयूटी बीडी खरीद के पीनी पड़ रही है. क्या चलेगी ये सरकार. अब तो पत्रकार भी इनकी रोज बखिया उधेड़ रहे हैं. हमारे थानेदार साहब मोहल्ले तक के पत्रकार को सैट रखते हैं.यह सरकार होकर भी कुछ नहीं कर पाई. न अन्ना को सैट कर पाई न पैसे को. यह ज्यादा दिन नहीं चलेगी. क्या करूँ. अन्ना के साथ एक फोटो खिंचवा ही लूं, वक्त जरूरत काम आयेगा.
ऐसे मनीषी एवं विख्यात व्यंग्यकार को मेरे शत-शत नमन, पालागन.
योगेश विकास
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