भगवान सिंह हंसजी
आप ने मेरे लेख पर बहुत ही रोचक समीक्षा की है। ये आपका ही कमाल है कि कि आप कि आप किसी चीज़ की पर्त के भीतर पर्त उतारकर वास्तविकता तक पहुंचने की दमखम रखते हैं। मेरा व्यंग्य तो जो था वह था ही आपकी टिप्पणी ने उसे और रोचक बना दिया। जय भगवान की। जयलोकमंगल.
पंडित सुरेश नीरव
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