हिंदी दिवस और
पत्रं-पुष्षम
हिंदी दिवस,हिंदी
पखवाड़े और हिंदी माह लगभग सभी सरकारी विभागों में आयोजित किये जाते हैं। जिसमें
कि हिंदी के प्रतिष्ठित कवि-पत्रकार-कथाकार भाग लेते हैं। हिंदी के प्रोत्साहन के
लिए ऐसे कार्यक्रम हों ये बहुत ही अच्छी बात है मगर कई विभागों में रचनाकारों को
पारिश्रमिक के रूप में जो पत्रं-पुष्पं भेंट किये जाते हैं वे आज की मंहगाई के दौर
में बहुत हास्यास्पद से लगते हैं। दिल्ली शहर नहीं है। पूरा प्रदेश है। यहां यदि
कोई विद्वान अपने साधन से भी जाता है तो पांच-सात सौ रुपए का पेट्रोल आयोजन स्थल
तक पहुंचने में खर्च हो जाता है। आयोजन में दो-तीन घंटे खर्च करने के बाद यदि किसी
को बतौर महताने के महज 100रुपए का चैक
पकड़ा दिया जाए तो क्या यह उचित है। जबकि यही संस्थान अपने प्रचार के लिए करोड़ों
रुपए खर्च करते हैं। क्या हिंदी दिवस को वे महज खानापूरी मानते हैं। और अगर नहीं
तो अभी तक उन्होंने इस दिशा में कुछ क्यों नहीं सोचा। मैं संबधित अधिकारियों से
निवेदन करता हूं कि वे इस दिशा में कोई सार्थक पहल अवश्य करें। मेरा इसमें कोई
व्यक्तिगत लाभ नहीं है मगर हिंदी जिसे हम राजभाषा और राष्ट्रभाषा कहते हैं उसकी और
उसकी सेवा में रत विद्वानों की प्रतिष्ठा के मद्देनजर मुझे लगा कि मैं अपनी बात आप
तक जरूर पहुंचाऊं। जब जागो तभी सवेरा। शायद मेरी बात का ऐसा ही कुछ असर हो पाए।
पंडित सुरेश नीरव
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