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Saturday, September 24, 2011

बिल्कुल नये दो मुक्तक दे रहा हूं

ऐसा नही किसी को चाहा नहीं कभी,
ऐसा नही किसी ने चाहा नहीं कभी,
कमज़र्फ नहीं हम बाज़र्फ लोग हैं --
चाहतों का ढोल बजाया नहीं कभी,

किसी बिगडैल नाजनीन की चाहत नहीं हैं ,हम
ज़िंदगी को      आपकी इनायत नहीं हैं, हम
खारिज़ करें या माने कुछ फर्क नहीं है--
इंकलाब हैं, ज़िंदा हैं,    रिवायत नहीं हैं हम         

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