बिल्कुल नये दो मुक्तक दे रहा हूं
ऐसा नही किसी को चाहा नहीं कभी,
ऐसा नही किसी ने चाहा नहीं कभी,
कमज़र्फ नहीं हम बाज़र्फ लोग हैं --
चाहतों का ढोल बजाया नहीं कभी,
किसी बिगडैल नाजनीन की चाहत नहीं हैं ,हम
ज़िंदगी को आपकी इनायत नहीं हैं, हम
खारिज़ करें या माने कुछ फर्क नहीं है--
इंकलाब हैं, ज़िंदा हैं, रिवायत नहीं हैं हम
ऐसा नही किसी को चाहा नहीं कभी,
ऐसा नही किसी ने चाहा नहीं कभी,
कमज़र्फ नहीं हम बाज़र्फ लोग हैं --
चाहतों का ढोल बजाया नहीं कभी,
किसी बिगडैल नाजनीन की चाहत नहीं हैं ,हम
ज़िंदगी को आपकी इनायत नहीं हैं, हम
खारिज़ करें या माने कुछ फर्क नहीं है--
इंकलाब हैं, ज़िंदा हैं, रिवायत नहीं हैं हम
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