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Sunday, October 9, 2011

अगर रपट जइयो तो हमें न बुलइयो


हास्य-व्यंग्य-
सचरित्र सड़कों के पथभ्रष्ट पथिक
पंडित सुरेश नीरव
 सड़कें हमारे भारत की प्राचीनतम ललित कलाओं में एक है इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि इन सड़कों का प्रचलन मोहनजोदड़ो और हड़प्पाकाल में भी खूब खुलकर हुआ करता था। सड़क पर महीन पच्चीकारी की जाती थी ताकि सड़क इतनी चिकनी न हो जाए कि  उस पर चलनेवाले फिसल-फिसल जाएं। अगर धोखे से कोई एक-आध सड़क डिफेक्टिव यानी चिकनी बन जाती थी तो राज्य के आदेश से वहां तख्तियां लगा दी जाती थीं- सावधान सड़क चिकनी है। ध्यान दें आगे गड्ढारहित सड़क है। संभलकर चलें। अगर रपट जइयो तो हमें न बुलइयो। ऐसे तमाम खबरदार जुमले जनता को सावधान करने के लिए पूरी मुस्तैदी के साथ चिकनी सड़कों पर लगाए जाते थे। और ऐसी चिकनपट्ट सड़के बनानेवाले अपराधी ठेकेदारों को समारोहपूर्वक मृत्युदंड दे दिया जाता था। गड्ढेदार सड़कें हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं। बददिमाग शेरशाह सूरी ने ग्रांडट्रंक रोड बनाकर और चंद सिरफिरे फिरंगियों ने जरूर कुछ चिकन पट्ट सड़कें बनाकर हमारी पुरातन कला को नष्ट करना चाहा मगर आजादी के बाद सरकारी प्रोत्साहन और कुशल ठेकेदारों के सांस्कृतिक रुझान की बदौलत हमारी सड़कों ने फिर अपना खोया हुआ गौरव प्राप्त कर लिया। कुछ सड़कें तो इतनी भैरंट मौलिक हैं कि साधारण पदयात्री तो क्या विश्व हैरीटेजजैसी असाधारण संस्थाएं भी पता नहीं कर पा रही हैं कि ये सड़कें आज की हैं या हड़प्पा काल की हैं। भारत के सड़कों के गड्ढों की कृपा से पुराने समय के घुड़सवार ही नहीं पैदल पथिक भी लोहे का टोप पहनकर सड़कों पर चला करते थे। वीआईपी किस्म के लोग मुकुट भी पहना करते थे। आज भी लोग शान से सिर पर हेलमेट पहनकर अपनी उस पुरातन परंपरा का परचम फहराने में जुटे हुए हैं। जो लोग हेलमेट न पहनकर अपनी इस परंपरा का और सड़क के गड्ढों का अपमान करते हैं सरकार उनसे जुर्माना वसूल कर के उन्हें उनकी औकात बताती रहती है। कुछ लोग चिकनी त्वचावाले भ्रष्ट पथ पर चलकर पथभ्रष्ट हो जाते हैं। और फिर ये पथभ्रष्ट पथिक सचरित्र सड़कों पर चलकर उनका चरित्र हनन करने का जघन्य अपराध कर डालते हैं। ऐसी तमाम ओछी हरकतों के बावजूद भारतीयों की सड़क-निष्ठा में इंचभर भी कमी नहीं आई है। हमें गर्व है कि तमाम दुष्प्रचार के बावजूद विश्व में सबसे अधिक भारतीय समाज ही है जो कि सड़कों पर प्राण त्याग कर सीधे स्वर्ग जाते हैं। करोड़ों कांवरियों के पवित्र पदाघात से पवित्र हुई भारतीय सड़कें गड्ढों की दिव्य महिमा के कारण आजकल प्रसव-प्रसूति का मनपसंद स्थल भी बनती जा रही हैं। सड़कों पर जन्मे ये सड़कछाप नौनिहाल ही अपने देश का सुनहरा भविष्य हैं। इन्हें देखकर ही हमें यकीन होता है कि हम सुनहरे कल की ओर बढ़ रहे हैं। सुनते हैं कि महाभारत काल में किन्हीं युधिष्ठिर महोदय का रथ भारत की ऐतिहासिक सड़कों से उचक कर ऊपर चला करता था। सड़क के इस सरासर घोर अपमान से सड़कप्रिय कड़क दुर्योधन इतना भड़क गया कि उसने  युधिष्ठिर को सबक सिखाने के लिए उसका राज्य छीनकर टोटल पांडवों को विद फैमिली जिला बदर कर दिया। वैसे श्रीकृष्ण यदुवंशीजी ने भी युधिष्ठिर की इस सड़क अपमान की ओछी घटना को इतना सीरियसली लिया था कि अश्वत्थामा हतो नरो कुंजरः के डबलमीनिंग डॉयलाग के एक तीर से ही युधिष्ठिर का रथ सड़कखोर बना दिया। अभी हाल की हुई रिसर्चों के मुताबिक आर्यावर्त्त की सड़कों से लंकेश रावण भी इतना आतंकित था कि सीता हरण की धांसू वारदात के लिए वह रथ से नहीं पुष्पक विमान से इंडिया आया। हमारे देश के नेता इस मामले में रावण से इक्कीस ही हैं जो गड्ढों की सड़कों को गले लगाते हुए रथ यात्राएं निकालनें का भरपूर दुर्दांत दमखम रखते हैं। गड्ढेदार सड़कें और धचकेदार नेता हमारे देश की शान और जान हैं।
आई-204,गोविंदपुरम,गाज़ियाबाद-201013
मोबाइल-09810243966


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