बेक़रारी सी बेक़रारी है
दिल भी भारी है, रात भारी है।
ज़िन्दगी की बिसात पर अक्सर
जीती बाज़ी भी हमने हारी है।
तोड़ो दिल मेरा, शौक़ से तोड़ो
चीज़ मेरी नहीं, तुम्हारी है।
बारे- हस्ती उठा सका न कोई
ये गमे- दिल जहां से भारी है।
आँख से छुप के दिल में बैठे हो
हाय कैसी ये पर्दादारी है।
ताबिश देहलवी
प्रस्तुति- मृगेन्द्र मक़बूल
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