यह मंच आपका है आप ही इसकी गरिमा को बनाएंगे। किसी भी विवाद के जिम्मेदार भी आप होंगे, हम नहीं। बहरहाल विवाद की नौबत आने ही न दैं। अपने विचारों को ईमानदारी से आप अपने अपनों तक पहुंचाए और मस्त हो जाएं हमारी यही मंगल कामनाएं...
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Wednesday, November 16, 2011
जनाव मकबूलजी पालागन, आपकी बेहतरीन गजल के लिए आपको बधाई देता हूँ. गजल के निम्न बोल बहुत ही पसंद आए-
बारे- हस्ती उठा सका न कोई
ये गमे- दिल जहां से भारी है।
आँख से छुप के दिल में बैठे हो
हाय कैसी ये पर्दादारी है।
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