दुश्मन भले ही कुछ कहे दुनिया जहान में
पढ़ते रहो क़सीदे, तिरंगे की शान में।
जान डालता है ये, मुर्दों की जान में
झुकता है सर हमेशा, तिरंगे की शान में।
नूर उनका झिलमिलाता है, रंगों में देखिये
कुर्बान हो गए जो, तिरंगे की शान में।
मिसरे ग़ज़ल के कैसे हों, ये हम बता रहे
तासीर जैसी होती है, तीरो- कमान में।
मक़बूल हो गए वो, दुनिया में दोस्तो
हस्ती मिटा गए जो तिरंगे की शान में।
मृगेन्द्र मक़बूल
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